उपन्यास-गोदान-मुंशी प्रेमचंद

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गोदान खुर्शेद ने उनका हाथ पकड़कर बैठाया -- आप भी सम्पादकजी निरे पोंगा ही रहे। अजी यह दुनिया है, जिसके जी में जो आता है, बकता है। कुछ लोग सुनते हैं ...

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